श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 8: गर्भोदकशायी विष्णु से ब्रह्मा का प्राकट्य  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.8.8 
सांख्यायन: पारमहंस्यमुख्यो
विवक्षमाणो भगवद्विभूती: ।
जगाद सोऽस्मद्गुरवेऽन्विताय
पराशरायाथ बृहस्पतेश्च ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
साङ्ख्यायन:—महर्षि सांख्यायन; पारमहंस्य-मुख्य:—समस्त अध्यात्मवादियों में प्रमुख; विवक्षमाण:—बाँचते समय; भगवत्- विभूती:—भगवान् की महिमाएँ; जगाद—बतलाया; स:—उसने; अस्मत्—मेरे; गुरवे—गुरु को; अन्विताय—अनुसरण किया; पराशराय—पराशर मुनि के लिए; अथ बृहस्पते: च—बृहस्पति को भी ।.
 
अनुवाद
 
 सांख्यायन मुनि अध्यात्मवादियों में प्रमुख थे और जब वे श्रीमद्भागवत के शब्दों में भगवान् की महिमाओं का वर्णन कर रहे थे तो ऐसा हुआ कि मेरे गुरु पराशर तथा बृहस्पति दोनों ने उनको सुना।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥