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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.9.15 
यस्यावतारगुणकर्मविडम्बनानि
नामानि येऽसुविगमे विवशा गृणन्ति ।
तेऽनैकजन्मशमलं सहसैव हित्वा
संयान्त्यपावृतामृतं तमजं प्रपद्ये ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
यस्य—जिसके; अवतार—अवतार; गुण—दिव्य गुण; कर्म—कर्म; विडम्बनानि—सभी रहस्यमय; नामानि—दिव्य नाम; ये— वे; असु-विगमे—इस जीवन को छोड़ते समय; विवशा:—स्वत:; गृणन्ति—आवाहन करते हैं; ते—वे; अनैक—अनेक; जन्म—जन्म; शमलम्—संचित पाप; सहसा—तुरन्त; एव—निश्चय ही; हित्वा—त्याग कर; संयान्ति—प्राप्त करते हैं; अपावृत—खुली; अमृतम्—अमरता; तम्—उस; अजम्—अजन्मा की; प्रपद्ये—मैं शरण लेता हूँ ।.
 
अनुवाद
 
 मैं उनके चरणकमलों की शरण ग्रहण करता हूँ जिनके अवतार, गुण तथा कर्म सांसारिक मामलों के रहस्यमय अनुकरण हैं। जो व्यक्ति इस जीवन को छोड़ते समय अनजाने में भी उनके दिव्य नाम का आवाहन करता है उसके जन्म-जन्म के पाप तुरन्त धुल जाते हैं और वह उन भगवान् को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।
 
तात्पर्य
 भगवान् के अवतारों के कार्यकलाप एक प्रकार से उन कार्यों के अनुकरण हैं, जो भौतिक जगत में चलते रहते हैं। वे मंच पर अभिनेता के समान हैं। अभिनेता मंच पर राजा के कार्यकलापों की नकल उतारता है यद्यपि वह सचमुच में राजा नहीं होता। इसी तरह जब भगवान् अवतरित होते हैं, तो वे ऐसी भूमिकाओं का अनुकरण करते हैं जिनसे उन्हें कुछ भी लेना देना नहीं होता। भगवद्गीता (४.१४) में कहा गया है कि भगवान् को उन कार्यों से कुछ भी लेना देना नहीं होता जिनमें वे लगे हुए प्रतीत होते हैं—न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा। भगवान् सर्वशक्तिमान हैं। वे अपनी इच्छामात्र से कोई भी कार्य अथवा प्रत्येक कार्य कर सकते हैं। जब वे कृष्ण के रूप में अवतरित हुए तो उन्होंने यशोदा तथा नन्द के पुत्र-रूप में भूमिका निभाई और उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाया, यद्यपि पर्वत उठाना उनका कार्य नहीं है। वे अपनी इच्छामात्र से लाखों गोवर्धन पर्वतों को उठा सकते हैं। उन्हें अपने हाथ से उसे उठाने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु वे इसे उठा कर सामान्य जीव का अनुकरण करते हैं और साथ ही वे अपनी आधिदैविक शक्ति को दिखाते हैं। इस तरह उनको गोवर्धनधारी नाम से भी पुकारा जाता है। अत: उनके अवतार-रूप के कार्य और भक्तों के प्रति पक्षपात अनुकरण-मात्र हैं जिस तरह कि मंच के दक्ष अभिनेता का वेश होता है। किन्तु उस रूप में उनके सारे कार्य सर्वशक्तिमान के होते हैं और पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के अवतारों के ऐसे कार्यों का स्मरण उतना ही शक्तिशाली होता है जितना कि साक्षात् उनका। अजामिल ने अपने पुत्र नारायण के नाम को पुकार करके भगवान् नारायण के पवित्र नाम का स्मरणमात्र किया था, और इससे उसे जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त करने का पूरा पूरा अवसर प्राप्त हो गया।
 
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