रूपम्—स्वरूप; यत्—जो; एतत्—वह; अवबोध-रस—आपकी अन्तरंगा शक्ति के; उदयेन—प्राकट्य से; शश्वत्—चिरन्तन; निवृत्त—से मुक्त; तमस:—भौतिक कल्मष; सत्-अनुग्रहाय—भक्तों के हेतु; आदौ—पदार्थ की सृजनशक्ति में मौलिक; गृहीतम्—स्वीकृत; अवतार—अवतारों का; शत-एक-बीजम्—सैकड़ों का मूल कारण; यत्—जो; नाभि-पद्म—नाभि से निकला कमल का फूल; भवनात्—घर से; अहम्—मैं; आविरासम्—उत्पन्न हुआ ।.
अनुवाद
मैं जिस रूप को देख रहा हूँ वह भौतिक कल्मष से सर्वथा मुक्त है और अन्तरंगा शक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में भक्तों पर कृपा दिखाने के लिए अवतरित हुआ है। यह अवतार अन्य अनेक अवतारों का उद्गम है और मैं स्वयं आपके नाभि रूपी घर से उगे कमल के फूल से उत्पन्न हुआ हूँ।
तात्पर्य
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर (शिव) ये तीन देव, जो तीनगुणों (रजो, सतो तथा तमोगुण) के अधिष्ठाता हैं, गर्भोदकशायी विष्णु से उत्पन्न होते हैं जिनका वर्णन ब्रह्मा यहाँ कर रहे हैं। क्षीरोदकशायी विष्णु से विराट जगत की जीवन अवधि में विभिन्न युगों में अनेक विष्णु विस्तारित होते हैं। इनका विस्तार केवल शुद्ध भक्तों के दिव्य सुख के लिए ही होता है। विभिन्न युगों तथा कालों में प्रकट होने वाले विष्णु के अवतारों की तुलना कभी भी बद्धजीवों से नहीं की जानी चाहिए। विष्णु तत्त्वों की तुलना ब्रह्मा तथा शिव जैसे देवों से नहीं की जानी चाहिए, न ही वे समान स्तर पर हैं। जो भी इनकी तुलना करता है, वह पाषण्डी कहलाता है। यहाँ पर उल्लिखित तमस: भौतिक प्रकृति है। आध्यात्मिक प्रकृति का तमस: से सर्वथा पृथक् अस्तित्व है। इसीलिए आध्यात्मिक प्रकृति अवबोध रस अथवा अवरोध रस कहलाती है। अवरोध का अर्थ है “जो पूर्णतया निरस्त करे।” अध्यात्म में किसी भी साधन से भौतिक सम्पर्क की कोई सम्भावना नहीं रहती। ब्रह्मा पहले जीव हैं और इसलिए वे गर्भोदकशायी विष्णु के उदर से उत्पन्न कमल के फूल से अपने जन्म का उल्लेख करते हैं।
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