परमेश्वर मुझ पर कृपालु हों। वे इस जगत में सारे जीवों के एकमात्र मित्र तथा आत्मा हैं और वे अपने छ: ऐश्वर्यों द्वारा जीवों के चरम सुख हेतु इन सबों का पालन-पोषण करते हैं। वे मुझ पर कृपालु हों, जिससे मैं पहले की तरह सृजन करने की आत्मपरीक्षण शक्ति से युक्त हो सकूँ, क्योंकि मैं भी उन शरणागत जीवों में से हूँ जो भगवान् को प्रिय हैं।
तात्पर्य
भगवान् पुरुषोत्तम अर्थात् श्रीकृष्ण दिव्य तथा भौतिक दोनों ही जगतों में सबों के पालनकर्ता हैं। वे सबों के जीवन तथा मित्र हैं, क्योंकि जीवों तथा भगवान् के बीच शाश्वत सहज स्नेह तथा प्रेम होता है। वे सबों के एकमात्र मित्र तथा हितैषी हैं और वे अद्वय हैं। भगवान् अपने छ: दिव्य ऐश्वर्यों द्वारा सर्वत्र समस्त जीवों का पालन करते हैं जिसके कारण वे भगवान् अथवा पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर कहलाते हैं। ब्रह्माजी ने भगवान् की कृपा पाने के लिए प्रार्थना की जिससे वे पहले की तरह ब्रह्माण्ड का सृजन करने में समर्थ हो सकें। केवल भगवान् की अहैतुकी कृपा से वे मरीचि तथा नारद जैसी भौतिक तथा आध्यात्मिक विभूतियों का सृजन कर सके। ब्रह्मा ने भगवान् से प्रार्थना की, क्योंकि शरणागत के प्रति वे अतीव प्रिय रहते हैं। शरणागत आत्मा भगवान् के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं जानता, अतएव भगवान् उसके प्रति अतीव वत्सल रहते हैं।
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