भगवान् सदा ही शरणागतों को वर देने वाले हैं। उनके सारे कार्य उनकी अन्तरंगा शक्ति रमा या लक्ष्मी के माध्यम से सम्पन्न होते हैं। मेरी उनसे यही विनती है कि भौतिक जगत के सृजन में वे मुझे अपनी सेवा में लगा लें और मेरी यही प्रार्थना है कि मैं अपने कर्मों द्वारा भौतिक रूप से प्रभावित न होऊँ, क्योंकि इस तरह मैं स्रष्टा होने की मिथ्या-प्रतिष्ठा त्यागने में सक्षम हो सकूँगा।
तात्पर्य
भौतिक सृजन, पालन तथा संहार के निमित्त प्रकृति के तीन गुणावतार—ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर—हैं। किन्तु विष्णु रूप में, अपनी अन्तरंगा शक्ति में भगवान् का अवतार सम्पूर्ण कार्यों के लिए परम शक्ति है। ब्रह्मा ने, जो सृजन के गुणों में सहायक मात्र हैं भगवान् के उपकरण रूप में अपने वास्तविक पद पर बने रहने की इच्छा व्यक्त की। न कि अपने को स्रष्टा होने की झूठी प्रतिष्ठा से गर्वित होने की। भगवान् का प्रिय बनने और उनका वर पाने की, यही विधि है। मूर्ख लोग अपने द्वारा निर्मित सम्पूर्ण सृजनों का श्रेय लेना चाहते हैं, किन्तु बुद्धिमान लोग यह भली-भाँति जानते हैं कि भगवान् की इच्छा के बिना एक पत्ती भी नहीं हिल सकती। इस तरह अद्भुत सृजनों का श्रेय भगवान् को मिलना चाहिए। एकमात्र आध्यात्मिक चेतना द्वारा ही मनुष्य अपने को भौतिक संसर्ग के कल्मष से मुक्त कर सकता है और भगवान् द्वारा प्रदत्त वर प्राप्त कर सकता है।
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