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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.9.31 
तत आत्मनि लोके च भक्तियुक्त: समाहित: ।
द्रष्टासि मां ततं ब्रह्यन्मयि लोकांस्त्वमात्मन: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; आत्मनि—तुम अपने में; लोके—ब्रह्माण्ड में; —भी; भक्ति-युक्त:—भक्ति में स्थित; समाहित:—पूर्णतया निमग्न; द्रष्टा असि—तुम देखोगे; माम्—मुझको; ततम्—सर्वत्र व्याप्त; ब्रह्मन्—हे ब्रह्मा; मयि—मुझमें; लोकान्—सारे ब्रह्माण्डों को; त्वम्—तुम; आत्मन:—जीव ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्रह्मा, जब तुम अपने सर्जनात्मक कार्यकलाप के दौरान भक्ति में निमग्न रहोगे तो तुम मुझको अपने में तथा ब्रह्माण्ड भर में देखोगे और तुम देखोगे कि मुझमें स्वयं तुम, ब्रह्माण्ड तथा सारे जीव हैं।
 
तात्पर्य
 यहाँ भगवान् द्वारा यह उद्धरण दिया गया है कि ब्रह्मा दिन के समय उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में देखेंगे। वे प्रशंसा करेंगे कि किस तरह वृन्दावन में अपने बालपन के समय भगवान् ने अपना विस्तार बछड़ों के रूप में कर लिया था, और वे जान सकेंगे कि किस तरह यशोदामाता ने कृष्ण की बाललीलाओं के समय उनके मुख के भीतर सारे ब्रह्माण्डों और लोकों को देखा था तथा वे यह भी देख सकेंगे कि ब्रह्मा के दिन में भगवान् कृष्ण के प्राकट्य के दौरान कई लाख ब्रह्मा होते हैं। किन्तु भगवान् के इतने सारे शाश्वत दिव्य रूप, जो सर्वत्र प्रकट होते रहते हैं किसी की समझ में नहीं आ सकते; ये केवल उन शुद्ध भक्तों द्वारा ही समझे जा सकते हैं, जो सदैव भगवान् की भक्ति में लगे रहते हैं और भगवान् में पूरी तरह से लीन रहते हैं। यहाँ पर ब्रह्मा की उच्च योग्यताओं का भी संकेत हुआ है।
 
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