चूँकि तुमने जनसंख्या को असंख्य रूप में बढ़ाने तथा अपनी सेवा के प्रकारों को विस्तार देने की इच्छा प्रकट की है, अत: तुम इस विषय से कभी भी वंचित नहीं होगे, क्योंकि सभी कालों में तुम पर मेरी अहैतुकी कृपा बढ़ती ही जायेगी।
तात्पर्य
भगवान् का शुद्ध भक्त विशेष काल, वस्तु तथा परिस्थिति के तथ्यों से ज्ञात होने के कारण भगवद्भक्तों की संख्या को नाना प्रकार से सदैव बढ़ाना चाहता है। दिव्य सेवा का ऐसा विस्तार भौतिकतावादी को भले ही भौतिक लगे, किन्तु तथ्य तो यह है कि वह भक्त के प्रति भगवान् की अहैतुकी कृपा का ही विस्तार होता है। ऐसे कार्यों की योजनाएँ भौतिक कार्य प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु परमेश्वर की दिव्य इन्द्रियों की तुष्टि में लगे होने से उनकी शक्ति भिन्न-भिन्न होती है।
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