श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.9.37 
तुभ्यं मद्विचिकित्सायामात्मा मे दर्शितोऽबहि: ।
नालेन सलिले मूलं पुष्करस्य विचिन्वत: ॥ ३७ ॥
 
शब्दार्थ
तुभ्यम्—तुमको; मत्—मुझको; विचिकित्सायाम्—जानने के तुम्हारे प्रयास करने पर; आत्मा—आत्मा; मे—मेरा; दर्शित:— प्रदर्शित; अबहि:—भीतर से; नालेन—डंठल से; सलिले—जल में; मूलम्—जड़; पुष्करस्य—आदि स्रोत कमल का; विचिन्वत:—चिंतन करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 जब तुम यह सोच-विचार कर रहे थे कि तुम्हारे जन्म के कमल-नाल के डंठल का कोई स्रोत है कि नहीं और तुम उस डंठल के भीतर प्रविष्ट भी हो गये थे, तब तुम कुछ भी पता नहीं लगा सके थे। किन्तु उस समय मैंने भीतर से अपना रूप प्रकट किया था।
 
तात्पर्य
 भगवान् को न तो मानसिक चिन्तन द्वारा, न ही भौतिक इन्द्रियों की सहायता से, अपितु एकमात्र उनकी अहैतुकी कृपा होने पर अनुभव किया जा सकता है। भौतिक इन्द्रियाँ भगवान् की दिव्य जानकारी तक नहीं पहुँच सकतीं। उन्हें एकमात्र विनीत भक्ति के द्वारा जाना जा सकता है तब वे भक्त के समक्ष स्वयं प्रकट होते हैं। एकमात्र भगवत्प्रेम द्वारा मनुष्य ईश्वर को जान सकता है, अन्य किसी प्रकार से नहीं। भगवान् को भौतिक आँखों से नहीं देखा जा सकता है किन्तु उन्हें भगवत्प्रेम के अंजन से खुले दिव्य नेत्रों द्वारा भीतर से देखा जा सकता है। जब तक पदार्थ के मलिन आवरण के कारण, मनुष्य की आध्यात्मिक आँखें बन्द रहती हैं, वह भगवान् को नहीं देख सकता। किन्तु जब भक्तियोग द्वारा यह मल (धूल) हटा दिया जाता है, तो मनुष्य निश्चित रूप से भगवान् का दर्शन कर सकता है। ब्रह्मा अपने व्यक्तिगत प्रयास से कमलनाल का मूल देख पाने में असफल रहे, किन्तु जब भगवान् उनकी तपस्या तथा भक्ति से तुष्ट हो गये तो उन्होंने बिना बाह्य प्रयास के अपने आपको भीतर से प्रकट कर दिया।
 
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