श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  3.9.40 
य एतेन पुमान्नित्यं स्तुत्वा स्तोत्रेण मां भजेत् ।
तस्याशु सम्प्रसीदेयं सर्वकामवरेश्वर: ॥ ४० ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो कोई; एतेन—इतने से; पुमान्—मनुष्य; नित्यम्—नियमित रूप से; स्तुत्वा—स्तुति करके; स्तोत्रेण—श्लोकों से; माम्—मुझको; भजेत्—पूजे; तस्य—उसकी; आशु—अतिशीघ्र; सम्प्रसीदेयम्—मैं पूरा करूँगा; सर्व—समस्त; काम— इच्छाएँ; वर-ईश्वर:—समस्त वरों का स्वामी ।.
 
अनुवाद
 
 जो भी मनुष्य ब्रह्मा की तरह प्रार्थना करता है और इस तरह जो मेरी पूजा करता है, उसे शीघ्र ही यह वर मिलेगा कि उसकी सारी इच्छाएँ पूरी हों, क्योंकि मैं समस्त वरों का स्वामी हूँ।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा द्वारा की गई स्तुति को कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं कर सकता है, जो अपनी इन्द्रियतृप्ति करने का इच्छुक है। ऐसी स्तुतियों का चयन वही व्यक्ति कर सकता है, जो भगवान् की सेवा करके उन्हें तुष्ट करना चाहता है। भगवान् दिव्य प्रेमाभक्ति विषयक समस्त इच्छाएँ निश्चय ही पूरी करते हैं, किन्तु वे अभक्तों की सनकों को पूरा नहीं कर सकते भले ही ऐसे आकस्मिक भक्तजन सर्वोत्कृष्ट प्रार्थनाएँ क्यों न करें।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥