मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय मुनि ने कहा; तस्मै—उससे; एवम्—इस प्रकार; जगत्-स्रष्ट्रे—ब्रह्माण्ड के स्रष्टा के प्रति; प्रधान-पुरुष- ईश्वर:—आदि भगवान्; व्यज्य इदम्—यह आदेश देकर; स्वेन—अपने; रूपेण—स्वरूप द्वारा; कञ्ज-नाभ:—भगवान् नारायण; तिरोदधे—अन्तर्धान हो गये ।.
अनुवाद
मैत्रेय मुनि ने कहा : ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ब्रह्मा को विस्तार करने का आदेश देकर आदि भगवान् अपने साकार नारायण रूप में अन्तर्धान हो गये।
तात्पर्य
ब्रह्माण्ड का सृजन कार्य करने के पूर्व ब्रह्मा ने भगवान् के दर्शन किये। चतु:श्लोकी भागवत की यही व्याख्या है। जब सृजन ब्रह्मा के कार्य की प्रतीक्षा में था, तो ब्रह्मा ने भगवान् को देखा, अत: भगवान् सृष्टि के पूर्व अपने साकार रूप में विद्यमान थे। उनका नित्य रूप ब्रह्मा के प्रयास से सृजित नहीं हुआ जैसाकि अल्पज्ञों की कल्पना है। भगवान् अपने यथारूप में ब्रह्मा के समक्ष प्रकट हुए और उसी रूप में उनके सामने से अदृश्य हो गये। यह रूप भौतिकता से कलुषित नहीं है।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध के अन्तर्गत ”सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति” नामक नौवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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