हे प्रभु, वे व्यक्ति जो आपके दिव्य कार्यकलापों के विषय में सर्वमंगलकारी कीर्तन तथा श्रवण करने से वंचित हैं निश्चित रूप से वे अभागे हैं और सद्बुद्धि से विहीन हैं। वे तनिक देर के लिए इन्द्रियतृप्ति का भोग करने हेतु अशुभ कार्यों में लग जाते हैं।
तात्पर्य
अगला प्रश्न है कि लोग भगवान् की महिमा तथा लीलाओं का श्रवण तथा कीर्तन करने जैसे शुभ कार्यों के विरुद्ध क्यों हैं जबकि ये कार्य संसार की सारी चिन्ताओं और झंझटों से पूर्ण स्वतंत्रता दिलाने वाले हैं? इस प्रश्न का एकमात्र उत्तर है कि वे इन्द्रियतृप्ति के निमित्त ही किये गये अपने अपराधपूर्ण कार्यों पर अधिदैवी नियंत्रण के कारण अभागे हैं। किन्तु भगवान् के शुद्ध भक्तों को ऐसे अभागे लोगों पर तरस आता है और वे धर्मोपदेश के भाव में उन्हें भक्ति के मार्ग में लाने के लिए राजी करने का प्रयास करते हैं। केवल शुद्ध भक्तों की कृपा से ऐसे अभागे लोग दिव्य सेवा के पद तक ऊपर उठ पाते हैं।
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