सर्वप्रथम मैं अपने गुरू, ॐ विष्णुपाद श्री श्रीमद् भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद को नमस्कार करता हूँ जिनके आदेश से मैं श्रीमद्भागवत के भक्तिवेदान्त भाष्य के लेखन की ओर उन्मुख हुआ हूँ, जो अपने में एक महान् कार्य है। उनकी कृपा से तीन स्कन्ध समाप्त हो चुके हैं और मैं चौथे स्कन्ध को प्रारम्भ करने जा रहा हूँ। मैं भगवान् चैतन्य को सादर नमस्कार करता हूँ जिन्होंने पाँच सौ वर्ष पूर्व भागवत धर्म के इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन का शुभारम्भ किया। उन्हीं के माध्यम से मैं छहों गोस्वामियों को और तब दिव्य युगल राधा तथा कृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो वृन्दावन में गोपों एवं व्रजभूमि की गोपिकाओं के साथ निरन्तर विहार करते हैं। मैं समस्त भक्तों तथा परमेश्वर के समस्त सेवकों को सादर नमस्कार करता हूँ। श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्ध में ३१ अध्याय हैं और इन समस्त अध्यायों में ब्रह्मा तथा मनुओं द्वारा की गई गौण सृष्टि का वर्णन हुआ है। परमेश्वर स्वयं अपनी भौतिक शक्ति को क्रियाशील बनाकर वास्तविक सृष्टि करते हैं और तब ब्रह्माण्ड के प्रथम जीव ब्रह्मा उनके आदेश से विभिन्न लोकों तथा उनके वासियों को उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं और मनु जैसी अपनी सन्तान तथा जीवों के अन्य जनकों के द्वारा जनसंख्या की वृद्धि करते हैं, जो परमेश्वर के आदेश से निरन्तर कार्यशील रहते हैं। चतुर्थ स्कन्ध के प्रथम अध्याय में स्वायंभुव मनु की तीन पुत्रियों तथा उनके वंशजों का वर्णन है। अगले छह अध्यायों में राजा दक्ष द्वारा यज्ञ किये जाने और उसके विध्वंस किए जाने का वर्णन है।
तत्पश्चात् पाँच अध्यायों में महाराज ध्रुव के चरित्र का वर्णन हुआ है। फिर अगले ग्यारह अध्यायों में राजा पृथु का चरित्र तथा अन्य आठ अध्यायों में प्रचेता राजाओं के कार्यकलापों का वर्णन हुआ है। जैसाकि इस अध्याय के प्रथम श्लोक में कहा गया है, स्वायंभुव मनु के तीन कन्याएँ थीं, जिनके नाम थे आकूति, देवहूति तथा प्रसूति। इन तीनों पुत्रियों में से देवहूति का वृत्तान्त उनके पति कर्दम मुनि तथा उनके पुत्र कपिल मुनि के समेत पहले ही दिया जा चुका है। इस अध्याय में प्रथम पुत्री आकूति के वंश का विशेष रूप से वर्णन किया जाएगा। स्वायंभुव मनु ब्रह्मा के पुत्र थे। ब्रह्मा के अन्य कई पुत्र थे, किन्तु मनु का विशेष उल्लेख सबसे पहले इसलिए होता है, क्योंकि वे भगवान् के परम भक्त थे। इस श्लोक में ‘च’ शब्द भी आया है, जो यह सूचित करता है कि स्वायंभुव मनु के इन तीन पुत्रियों के अतिरिक्त दो पुत्र भी थे।