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श्लोक 4.1.11  |
दक्षाय ब्रह्मपुत्राय प्रसूतिं भगवान्मनु: ।
प्रायच्छद्यत्कृत: सर्गस्त्रिलोक्यां विततो महान् ॥ ११ ॥ |
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शब्दार्थ |
दक्षाय—प्रजापति दक्ष को; ब्रह्म-पुत्राय—ब्रह्मा के पुत्र; प्रसूतिम्—प्रसूति को; भगवान्—महापुरुष; मनु:—स्वायंभुव मनु; प्रायच्छत्—प्रदान किया; यत्-कृत:—जिनके द्वारा रचित; सर्ग:—सृष्टि; त्रि-लोक्याम्—तीनो लोकों में; वितत:—विस्तार किया हुआ; महान्—अत्यधिक ।. |
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अनुवाद |
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स्वायंभुव मनु ने प्रसूति नामक अपनी कन्या ब्रह्मा के पुत्र दक्ष को दे दी, जो प्रजापतियों में से एक थे। दक्ष के वंशज तीनों लोकों में फैले हुए हैं। |
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