विदुर उवाच
अत्रेर्गृहे सुरश्रेष्ठा: स्थित्युत्पत्त्यन्तहेतव: ।
किञ्चिच्चिकीर्षवो जाता एतदाख्याहि मे गुरो ॥ १६ ॥
शब्दार्थ
विदुर: उवाच—श्रीविदुर ने कहा; अत्रे: गृहे—अत्रि के घर में; सुर-श्रेष्ठा:—प्रमुख देवता; स्थिति—पालन; उत्पत्ति—सृष्टि; अन्त—संहार; हेतव:—कारण; किञ्चित्—कुछ; चिकीर्षव:—करने के इच्छुक; जाता:—प्रकट हुए; एतत्—यह; आख्याहि— कहो, बताओ; मे—मुझको; गुरो—मेरे गुरु! ।.
अनुवाद
यह सुनकर विदुर ने मैत्रेय से पूछा : हे गुरु, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जो सम्पूर्ण सृष्टि के स्रष्टा, पालक तथा संहारक हैं, अत्रि मुनि की पत्नी से किस प्रकार उत्पन्न हुए?
तात्पर्य
विदुर की जिज्ञासा बिल्कुल उचित थी, क्योंकि उन्हें लगा कि जब परमात्मा, ब्रह्मा तथा शिव अत्रिमुनि की पत्नी
अनसूया के शरीर से प्रकट हुए हैं, तो इसका कोई महान् उद्देश्य होगा। अन्यथा वे इस प्रकार क्यों उत्पन्न होते?
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥