तप्यमानम्—तप करते हुए; त्रि-भुवनम्—तीनों लोक; प्राणायाम—श्वास वायु रोकने का अभ्यास; एधसा—ईंधन; अग्निना— अग्नि से; निर्गतेन—निकलता हुआ; मुने:—मुनि का; मूर्ध्न:—शिरो भाग; समीक्ष्य—देखकर; प्रभव: त्रय:—तीनों बड़े देव (ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर) ।.
अनुवाद
जब अत्रि मुनि गहन तप-साधना कर रहे थे तो उनके प्राणायाम के कारण उनके शिर से एक प्रज्ज्वलित अग्नि उत्पन्न हुई जिसे तीनों लोकों के तीन प्रमुख देवों ने देखा।
तात्पर्य
श्रील जीव गोस्वामी के अनुसार प्राणायाम की अग्नि मानसिक तोष है। उस अग्नि को परमात्मा विष्णु ने देखा और उन्हीं के माध्यम से ब्रह्मा तथा शिव ने भी देखा। अत्रि मुनि ने अपने प्राणायाम द्वारा परमात्मा अर्थात् जगत् के स्वामी पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जैसाकि भगवद्गीता में पुष्टि की गई है, जगत् के स्वामी तो वासुदेव हैं (वासुदेव: सर्वम् इति ) और उन्हीं के आदेश पर ब्रह्मा तथा शिव कार्य करते हैं। अत: वासुदेव के आदेश से ही ब्रह्मा तथा शिव ने अत्रि मुनि द्वारा किये जाने वाले कठोर तप को देखा और नीचे आने के लिए प्रमुदित हुए, जैसाकि अगले श्लोक में बताया गया है।
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