श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.1.22 
अप्सरोमुनिगन्धर्वसिद्धविद्याधरोरगै: ।
वितायमानयशसस्तदाश्रमपदं ययु: ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
अप्सर:—अप्सराएँ; मुनि—परम साधु; गन्धर्व—गंधर्व लोक के वासी; सिद्ध—सिद्धलोक के वासी; विद्याधर—अन्य देवता; उरगै:—नागलोक के वासी; वितायमान—फैला हुआ; यशस:—यश, ख्याति; तत्—उसके; आश्रम-पदम्—आश्रम; ययु:— गये ।.
 
अनुवाद
 
 उस समय ये तीनों देव स्वर्गलोक के वासियों, यथा अप्सराओं, गन्धर्वों, सिद्धों, विद्याधरों तथा नागों समेत अत्रि के आश्रम पहुँचे। इस प्रकार वे उस मुनि के आश्रम में प्रविष्ट हुए, जो उनकी तपस्या के कारण विख्यात हो चुका था।
 
तात्पर्य
 वैदिक साहित्य में यह उपदेश दिया गया हैं कि मनुष्य को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की शरण में जाना चाहिए, जो इस जगत् के स्वामी हैं और इसका सृजन, पालन तथा संहार करने वाले हैं। वे परमात्मा रूप में जाने जाते हैं और जब परमात्मा की उपासना की जाती है, तो अन्य देवता, यथा ब्रह्मा तथा शिव, विष्णु के साथ-साथ प्रकट होते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर द्वारा आदेशित, होते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥