हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  4.1.24 
प्रणम्य दण्डवद्भूमावुपतस्थेऽर्हणाञ्जलि: ।
वृषहंससुपर्णस्थान् स्वै: स्वैश्चिह्नैश्च चिह्नितान् ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
प्रणम्य—नमस्कार करके; दण्ड-वत्—दण्ड के समान; भूमौ—पृथ्वी पर; उपतस्थे—गिर पड़े; अर्हण—पूजा की सारी सामग्री; अञ्जलि:—हाथ जोड़ कर; वृष—बैल; हंस—हंस पक्षी; सुपर्ण—गरुड़ पक्षी; स्थान्—स्थित; स्वै:—अपने; स्वै:—अपने; चिह्नै:—चिह्नों; —तथा; चिह्नितान्—पहचाने जाकर ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् उन्होंने उन तीनों देवों की स्तुति की जो अपने-अपने वाहनों—बैल, हंस तथा गरुड़—पर सवार थे, और अपने हाथों में डमरू, कुश तथा चक्र धारण किये थे। मुनि ने भूमि पर गिरकर उन्हें दण्डवत् प्रणाम किया।
 
तात्पर्य
 दण्ड अर्थात् ‘डंडा’ तथा वत् का अर्थ है ‘समान’। अपने से किसी श्रेष्ठ के समक्ष भूमि पर दण्ड के समान गिरना होता है और इस प्रकार से सम्मान करना दण्डवत् कहलाता है। अत्रि मुनि ने तीनों देवों का इसी प्रकार से सम्मान किया। ये देव अपने-अपने वाहनों तथा चिह्नों के द्वारा पहचाने गये। इस सम्बध में यहाँ यह वर्णित है कि भगवान् विष्णु गरुड़ पर आसीन थे और अपने हाथ में चक्र धारण किये थे। ब्रह्मा हंस पर सवार थे और अपने हाथ में कुश नामक घास लिए थे। शिवजी वृषभ पर आसीन थे और अपने हाथ में डमरू लिए थे। अत्रि मुनि ने उन्हें उनके विभिन्न वाहनों तथा चिह्नों से पहचान कर उनकी स्तुति की और सम्मान दिया।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥