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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  4.1.32 
एवं कामवरं दत्त्वा प्रतिजग्मु: सुरेश्वरा: ।
सभाजितास्तयो: सम्यग्दम्पत्योर्मिषतोस्तत: ॥ ३२ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; काम-वरम्—इच्छित वर; दत्त्वा—प्रदान करके; प्रतिजग्मु:—वापस चले गये; सुर-ईश्वरा:—प्रमुख देवता; सभाजिता:—पूजित होकर; तयो:—दोनों के; सम्यक्—पूरी तरह; दम्पत्यो:—पति तथा पत्नी; मिषतो:—देखते ही देखते; तत:—वहाँ से ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार उस युगल के देखते ही देखते तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर अत्रि मुनि को वर देकर उस स्थान से ओझल हो गये।
 
 
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