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श्लोक 4.1.32  |
एवं कामवरं दत्त्वा प्रतिजग्मु: सुरेश्वरा: ।
सभाजितास्तयो: सम्यग्दम्पत्योर्मिषतोस्तत: ॥ ३२ ॥ |
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शब्दार्थ |
एवम्—इस प्रकार; काम-वरम्—इच्छित वर; दत्त्वा—प्रदान करके; प्रतिजग्मु:—वापस चले गये; सुर-ईश्वरा:—प्रमुख देवता; सभाजिता:—पूजित होकर; तयो:—दोनों के; सम्यक्—पूरी तरह; दम्पत्यो:—पति तथा पत्नी; मिषतो:—देखते ही देखते; तत:—वहाँ से ।. |
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अनुवाद |
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इस प्रकार उस युगल के देखते ही देखते तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर अत्रि मुनि को वर देकर उस स्थान से ओझल हो गये। |
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