श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.1.35 
तत्पुत्रावपरावास्तां ख्यातौ स्वारोचिषेऽन्तरे ।
उतथ्यो भगवान्साक्षाद् ब्रह्मिष्ठश्च बृहस्पति: ॥ ३५ ॥
 
शब्दार्थ
तत्—उसके; पुत्रौ—दो पुत्र; अपरौ—अन्य; आस्ताम्—उत्पन्न हुए; ख्यातौ—प्रसिद्ध; स्वारोचिषे—स्वारोचिष युग में; अन्तरे— मनु के; उतथ्य:—उतथ्य; भगवान्—अत्यन्त शक्तिमान; साक्षात्—प्रत्यक्ष; ब्रह्मिष्ठ: च—आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत; बृहस्पति:— बृहस्पति ।.
 
अनुवाद
 
 इन चार पुत्रियों के अतिरिक्त उसके दो पुत्र भी थे। उनमें से एक उतथ्य कहलाया और दूसरा महान् विद्वान बृहस्पति था।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥