श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  4.1.4 
यस्तयो: पुरुष: साक्षाद्विष्णुर्यज्ञस्वरूपधृक् ।
या स्त्री सा दक्षिणा भूतेरंशभूतानपायिनी ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो; तयो:—उन दोनों में से; पुरुष:—नर; साक्षात्—प्रत्यक्ष; विष्णु:—परमेश्वर; यज्ञ—यज्ञ; स्वरूप-धृक्—स्वरूप धारण किये हुए; या—दूसरी; स्त्री—स्त्री; सा—वह; दक्षिणा—दक्षिणा; भूते:—सम्पत्ति की देवी का; अंश-भूता—भिन्नांश होने से; अनपायिनी—कभी न पृथक् होने वाली ।.
 
अनुवाद
 
 आकूति से उत्पन्न दोनों सन्तानों में से एक अर्थात् बालक तो प्रत्यक्ष पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् का अवतार था और उसका नाम था यज्ञ, जो भगवान् विष्णु का ही दूसरा नाम है। बालिका सम्पत्ति की देवी भगवान् विष्णु की प्रिया शाश्वत लक्ष्मी की अंश अवतार थी।
 
तात्पर्य
 सम्पत्ति की देवी लक्ष्मी भगवान् विष्णु की चिरसंगिनी हैं। यहाँ पर यह बताया गया है कि भगवान् विष्णु तथा लक्ष्मी, जो चिर-संगी हैं, एकसाथ आकूति के गर्भ से प्रकट हुए। जैसाकि अनेक विद्वानों ने पुष्टि की है विष्णु तथा लक्ष्मी भौतिक सृष्टि से परे हैं (नारायण: परोऽव्यक्तात् ); अत: उनका यह चिर सम्बन्ध बदला नहीं जा सकता। इसीलिए आगे चल कर आकूति से उत्पन्न यज्ञ ने धन की देवी के साथ विवाह कर लिया।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥