श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 54-55
 
 
श्लोक  4.1.54-55 
दिव्यवाद्यन्त तूर्याणि पेतु: कुसुमवृष्टय: ।
मुनयस्तुष्टुवुस्तुष्टा जगुर्गन्धर्वकिन्नरा: ॥ ५४ ॥
नृत्यन्ति स्म स्त्रियो देव्य आसीत्परममङ्गलम् ।
देवा ब्रह्मादय: सर्वे उपतस्थुरभिष्टवै: ॥ ५५ ॥
 
शब्दार्थ
दिवि—स्वर्गलोक में; अवाद्यन्त—बज उठे; तूर्याणि—तुरही; पेतु:—वर्षा की; कुसुम—फूलों की; वृष्टय:—वर्षा; मुनय:— मुनिगण ने; तुष्टुवु:—वैदिक स्तुतियाँ पढ़ीं; तुष्टा:—प्रसन्न; जगु:—गाने लगे; गन्धर्व—गन्धर्वगण; किन्नरा:—किन्नरगण; नृत्यन्ति स्म—नाचने लगे; स्त्रिय:—अप्सराएँ; देव्य:—स्वर्गलोक की; आसीत्—दृष्टिगोचर हो रह थे; परम-मङ्गलम्—परम मंगल; देवा:—देवतागण; ब्रह्म-आदय:—ब्रह्मा तथा अन्य; सर्वे—सबों ने; उपतस्थु:—पूजा की; अभिष्टवै:—प्रार्थनाओं से, स्तोत्रों से ।.
 
अनुवाद
 
 स्वर्गलोक में बाजे बजने लगे और आकाश से पुष्प बरसने लगे। प्रसन्न मुनि वैदिक स्तुतियों का उच्चारण करने लगे। गंधर्व तथा किन्नर लोक के वासी गाने लगे और स्वर्ग की अप्सराएँ नाचने लगीं। इस प्रकार नर-नारायण के जन्म के समय सभी मंगलसूचक चिह्न दिखाई पडऩे लगे। उसी समय ब्रह्मादि महान् देवों ने भी सादर स्तुतियाँ अर्पित कीं।
 
 
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