एवं सुरगणैस्तात भगवन्तावभिष्टुतौ ।
लब्धावलोकैर्ययतुरर्चितौ गन्धमादनम् ॥ ५८ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; सुर-गणै:—देवताओं द्वारा; तात—हे विदुर!; भगवन्तौ—श्रीभगवान्; अभिष्टुतौ—प्रशंसित होकर; लब्ध— प्राप्त कर; अवलोकै:—चितवन (कृपा की); ययतु:—चले गये; अर्चितौ—पूजित होकर; गन्ध-मादनम्—गन्धमादन पर्वत को ।.
अनुवाद
[मैत्रेय ने कहा :] हे विदुर, इस प्रकार देवताओं ने नर-नारायण मुनि के रूप में प्रकट श्रीभगवान् की पूजा की। भगवान् ने उन पर कृपा-दृष्टि डाली और फिर गन्धमादन पर्वत की ओर चले गये।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.