श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  4.1.58 
एवं सुरगणैस्तात भगवन्तावभिष्टुतौ ।
लब्धावलोकैर्ययतुरर्चितौ गन्धमादनम् ॥ ५८ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; सुर-गणै:—देवताओं द्वारा; तात—हे विदुर!; भगवन्तौ—श्रीभगवान्; अभिष्टुतौ—प्रशंसित होकर; लब्ध— प्राप्त कर; अवलोकै:—चितवन (कृपा की); ययतु:—चले गये; अर्चितौ—पूजित होकर; गन्ध-मादनम्—गन्धमादन पर्वत को ।.
 
अनुवाद
 
 [मैत्रेय ने कहा :] हे विदुर, इस प्रकार देवताओं ने नर-नारायण मुनि के रूप में प्रकट श्रीभगवान् की पूजा की। भगवान् ने उन पर कृपा-दृष्टि डाली और फिर गन्धमादन पर्वत की ओर चले गये।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥