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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  4.1.59 
ताविमौ वै भगवतो हरेरंशाविहागतौ ।
भारव्ययाय च भुव: कृष्णौ यदुकुरूद्वहौ ॥ ५९ ॥
 
शब्दार्थ
तौ—दोनों; इमौ—ये; वै—निश्चय ही; भगवत:—श्रीभगवान् का; हरे:—हरि का; अंशौ—अंश रूप विस्तार; इह—यहाँ (इस ब्रह्माण्ड में); आगतौ—प्रकट हुआ है; भार-व्ययाय—भार हल्का करने के लिए; —तथा; भुव:—जगत का; कृष्णौ—दो कृष्ण (कृष्ण तथा अर्जुन); यदु-कुरु-उद्वहौ—जो क्रमश: यदु तथा कुरु वंशों में सर्वश्रेष्ठ हैं ।.
 
अनुवाद
 
 नर-नारायण ऋषि कृष्ण के अंश विस्तार हैं और अब जगत का भार उतारने के लिए यदु तथा कुरु वंशों में क्रमश: कृष्ण तथा अर्जुन के रूप में प्रकट हुए हैं।
 
तात्पर्य
 नारायण तो श्रीभगवान् हैं, किन्तु नर श्रीभगवान् नारायण के अंश हैं। इस प्रकार शक्ति तथा शक्तिमान दोनों एकसाथ भगवान् हैं। मैत्रेय ने विदुर को बतलाया कि नारायण के अंश नर ने कुरु वंश में अवतार लिया है और कृष्ण के स्वांश नारायण कृष्ण अर्थात् पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के रूप में प्रकट हुए हैं जिससे दुखी मानवता का भौतिक बोझ से उद्धार हो सके। दूसरे शब्दों में, अब नारायण ऋषि जगत में कृष्ण तथा अर्जुन के रूप में विद्यमान थे।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥