भागवत पुराण » स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति » अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली » श्लोक 63 |
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| | श्लोक 4.1.63  | अग्निष्वात्ता बर्हिषद: सौम्या: पितर आज्यपा: ।
साग्नयोऽनग्नयस्तेषां पत्नी दाक्षायणी स्वधा ॥ ६३ ॥ | | शब्दार्थ | अग्निष्वात्ता:—अग्निष्वात्त; बर्हिषद:—बर्हिषद; सौम्या:—सौम्य; पितर:—पूर्वज, पितृगण; आज्यपा:—आज्यप; स- अग्नय:—जिनका साधन अग्नि सहित है; अनग्नय:—जिनका साधन अग्निरहित हैं; तेषाम्—उनकी; पत्नी—पत्नी; दाक्षायणी—दक्ष की कन्या; स्वधा—स्वधा ।. | | अनुवाद | | अग्निष्वात्त, बर्हिषद्, सौम्य तथा आज्यप—ये पितर हैं। वे या तो साग्निक हैं अथवा निरग्निक। इन समस्त पितरों की पत्नी स्वधा है, जो राजा दक्ष की पुत्री है। | | |
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