तुषिता नाम ते देवा आसन्स्वायम्भुवान्तरे ।
मरीचिमिश्रा ऋषयो यज्ञ: सुरगणेश्वर: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
तुषिता:—तुषितों की कोटि; नाम—नाम वाले; ते—सभी; देवा:—देवता; आसन्—हुए; स्वायम्भुव—मनु का नाम; अन्तरे— उस काल में; मरीचि-मिश्रा:—मरीचि इत्यादि; ऋषय:—ऋषिगण, साधुगण; यज्ञ:—भगवान् विष्णु का अवतार; सुर-गण- ईश्वर:—देवताओं के राजा ।.
अनुवाद
स्वायंभुव मनु के काल में ही ये सभी पुत्र देवता हो गये जिन्हें संयुक्त रूप में तुषित कहा जाता है। मरीचि सप्तर्षियों के प्रधान बन गये और यज्ञ देवताओं के राजा इन्द्र बन गये।
तात्पर्य
स्वायंभुव के जीवन काल (मन्वतर) में तुषित नामक देवताओं से, मरीचि इत्यादि सप्तर्षियों से तथा देवताओं के राजा यज्ञ की सन्तानों से छह प्रकार की जीवात्माएँ उत्पन्न हुईं और इन सबों ने अपनी संतानों के विस्तार से विश्व को जीवात्माओं से परिपूर्ण करने की भगवान् की आज्ञा का पालन किया। ये छह प्रकार की जीवात्माएँ हैं—मनु, देव, मनु-पुत्र, अंशावतार, सुरेश्वर तथा ऋषि। यज्ञ पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के अवतार होने के कारण देवताओं के नायक इन्द्र बने।
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