मैत्रेय ऋषि ने कहा : हे विदुर, तत्पश्चात् ध्रुव महाराज ने प्रजापति शिशुमार की पुत्री के साथ विवाह कर लिया जिसका नाम भ्रमि था। उसके कल्प तथा वत्सर नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए।
तात्पर्य
ऐसा प्रतीत होता है कि अपने पिता के सिंहासन पर पदारूढ़ होने तथा आत्म-साक्षात्कार हेतु उनके वन चले जाने के बाद ही ध्रुव महाराज ने विवाह किया। यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि उत्तानपाद अपने पुत्र के प्रति अत्यन्त वत्सल थे और चूँकि हर पिता का कर्तव्य है कि वह जल्दी से जल्दी अपने पुत्रों और पुत्रियों को ब्याह दे, तो फिर उन्होंने घर छोडऩे के पूर्व अपने पुत्र का विवाह क्यों नहीं किया? इसका उत्तर यही है कि महाराज उत्तानपाद राजर्षि थे। यद्यपि वे राजनीतिक कार्यों तथा सत्ता की व्यवस्था के कार्यों में अत्यधिक व्यस्त थे तो भी वे आत्म-साक्षात्कार के लिए अत्यन्त उत्सुक थे। अत: ज्योंही उनके पुत्र ध्रुव महाराज शासन का भार सँभालने के योग्य हो गये, उन्होंने घर छोड़ दिया, ठीक वैसे ही जैसे उनके पुत्र ने पाँच वर्ष की ही अवस्था में आत्म-साक्षात्कार हेतु बिना किसी भय के गृहत्याग कर दिया था। ऐसे उदाहरण विरले ही हैं जहाँ अन्य समस्त कार्यों के ऊपर आत्म-बोध पर अधिक बल दिया गया हो। महाराज उत्तानपाद यह भलीभाँति जानते थे कि अपने पुत्र ध्रुव महाराज का ब्याह करना उतना महत्त्वपूर्ण न था कि वन जाकर आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने पर वे इसे प्राथमिकता देते।
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