ध्रुव महाराज आयुधों की निरन्तर वर्षा से पूरी तरह ढक गये मानो निरन्तर जल-वृष्टि से कोई पर्वत ढक गया हो।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने इंगित किया है कि यद्यपि ध्रुव महाराज शत्रुओं की निरन्तर बाण-वर्षा से ढक गये थे, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं था कि वे युद्ध हार चुके थे। यहाँ पर निरन्तर वर्षा से आच्छादित पर्वत का उदाहरण उपयुक्त है, क्योंकि निरन्तर वर्षा से पर्वत के ढक जाने पर उसकी सारी गन्दगी धुल जाती है। इसी प्रकार शत्रुओं की निरन्तर बाण-वर्षा से ध्रुव महाराज में उन्हें पराजित करने की नवीन शक्ति आ गई। दूसरे शब्दों में, उनमें जो भी अपूर्णता थी वह सारी की सारी धुल गई।
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