स्वर्गलोकवासी सभी सिद्धजन आकाश से युद्ध देख रहे थे और जब उन्होंने देखा कि ध्रुव महाराज शत्रु की निरन्तर बाण-वर्षा से ढक गये हैं, तो वे हाहाकार करने लगे, “मनु के पौत्र ध्रुव हार गये, हार गये।” वे चिल्ला रहे थे कि ध्रुव महाराज तो सूर्य के समान हैं और इस समय वे यक्षों के समुद्र में डूब गए हैं।
तात्पर्य
इस श्लोक में मानव शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सामान्यत: यह शब्द ‘मनुष्य’ के लिए आता है। यहाँ पर ध्रुव महाराज को भी मनुष्य कहा गया है। न केवल ध्रुव महाराज, वरन् सारा मानव समाज, मनु का वंशज है। वैदिक साहित्य के अनुसार मनु विधि के प्रदाता हैं। आज भी भारत के सारे हिन्दू मनु द्वारा प्रदत्त विधि (नियमों) का पालन करते हैं। अत: मानव समाज का प्रत्येक व्यक्ति मानव अर्थात् मनु का वंशज है। किन्तु ध्रुव महाराज विशिष्ट मानव हैं, क्योंकि वे महान् भक्त हैं।
सिद्धलोक के वासी जो विमानों के बिना आकाश में उड़ सकते हैं, युद्ध में ध्रुव महाराज के कल्याण की कामना के इच्छुक थे। अत: श्रील रूप गोस्वामी कहते हैं कि न केवल भक्त परमेश्वर द्वारा सुरक्षित रहता है, वरन् समस्त देवता, यहाँ तक कि सामान्य मनुष्य भी, उसकी सुरक्षा के प्रति उत्सुक होते हैं। यहाँ पर ध्रुव महाराज को यक्षों के समुद्र में डूबा हुआ दिखाया गया है, यह भी सार्थक है। जब सूर्य क्षितिज में छिप जाता है, तो लगता है कि वह समुद्र में डूबा गया, किन्तु वास्तव में सूर्य इससे विपत्ति में नहीं फँसता। इसी प्रकार ध्रुव महाराज यक्षों के समुद्र में डूबे हुए प्रतीत हुए, किन्तु उन्हें कोई कष्ट न था। जिस प्रकार रात बीतने पर सूर्य पुन: उदय होता है, उसी प्रकार भले ही ध्रुव महाराज कष्ट में रहे हों, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं था कि वे परास्त हो चुके थे, क्योंकि आखिरकार यह युद्ध था और किसी भी युद्ध में चित-पट तो होती ही है।
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