महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा : हे विदुर, ध्रुव महाराज के बाणों से जो सिर छिन्न-भिन्न हुए थे वे सुन्दर कुण्डलों तथा पागों से अच्छी तरह से अलंकृत थे। उन शरीरों के पाँव सुनहरे ताड़ के वृक्षों के समान सुन्दर थे; उनकी भुजाएं सुनहरे कंकणों तथा बाजूबन्दों से सुसज्जित थीं और उनके सिरों पर बहुमूल्य सुनहरे मुकुट थे। युद्ध भूमि में बिखरे हुए ये आभूषण अत्यन्त आकर्षक लग रहे थे और किसी भी वीर के मन को मोह सकते थे।
तात्पर्य
ऐसा लगता है कि उन दिनों सैनिक सोने के आभूषण पहन कर तथा कवच और पगड़ी पहन कर युद्ध करने जाते थे और जब वे मरते थे तो ये सारी वस्तुएँ शत्रु-सेना द्वारा ले ली जाती थीं। नानाविध स्वर्णाभूषित वर्दियों के साथ युद्धभूमि में मरना वीरों के लिए सचमुच सुनहरा अवसर होता था।
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