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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.10.2 
इलायामपि भार्यायां वायो: पुत्र्यां महाबल: ।
पुत्रमुत्कलनामानं योषिद्रत्नमजीजनत् ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
इलायाम्—अपनी पत्नी इला को; अपि—भी; भार्यायाम्—अपनी पत्नी को; वायो:—वायुदेव की; पुत्र्याम्—पुत्री को; महा बल:—शक्तिशाली ध्रुव महाराज; पुत्रम्—पुत्र; उत्कल—उत्कल; नामानम्—नाम के; योषित्—स्त्री; रत्नम्—रत्न (श्रेष्ठ); अजीजनत्—उत्पन्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 अत्यन्त शक्तिशाली ध्रुव महाराज की एक दूसरी पत्नी थी, जिसका नाम इला था और वह वायुदेव की पुत्री थी। उससे उन्हें एक अत्यन्त सुन्दर कन्या तथा उत्कल नाम का एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
 
 
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