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श्लोक 4.10.23  |
क्षणेनाच्छादितं व्योम घनानीकेन सर्वत: ।
विस्फुरत्तडिता दिक्षु त्रासयत्स्तनयित्नुना ॥ २३ ॥ |
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शब्दार्थ |
क्षणेन—एक क्षण में; आच्छादितम्—ढका हुआ; व्योम—आकाश; घन—घने बादलों का; अनीकेन—समूह से; सर्वत:— सभी दिशाओं में; विस्फुरत्—चमकती; तडिता—बिजली से; दिक्षु—सभी दिशाओं में; त्रासयत्—भयभीत करता; स्तनयित्नुना—गर्जन से ।. |
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अनुवाद |
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एक क्षण में सारा आकाश घने बादलों से छा गया और घोर गर्जन सुनाई पडऩे लगा। बिजली चमकने लगी और भीषण वर्षा होने लगी। |
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