श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.10.23 
क्षणेनाच्छादितं व्योम घनानीकेन सर्वत: ।
विस्फुरत्तडिता दिक्षु त्रासयत्स्तनयित्नुना ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
क्षणेन—एक क्षण में; आच्छादितम्—ढका हुआ; व्योम—आकाश; घन—घने बादलों का; अनीकेन—समूह से; सर्वत:— सभी दिशाओं में; विस्फुरत्—चमकती; तडिता—बिजली से; दिक्षु—सभी दिशाओं में; त्रासयत्—भयभीत करता; स्तनयित्नुना—गर्जन से ।.
 
अनुवाद
 
 एक क्षण में सारा आकाश घने बादलों से छा गया और घोर गर्जन सुनाई पडऩे लगा। बिजली चमकने लगी और भीषण वर्षा होने लगी।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥