श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.10.27 
समुद्र ऊर्मिभिर्भीम: प्लावयन् सर्वतो भुवम् ।
आससाद महाह्राद: कल्पान्त इव भीषण: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
समुद्र:—समुद्र; ऊर्मिभि:—लहरों से; भीम:—भयानक; प्लावयन्—डुबाता हुआ; सर्वत:—सभी दिशाओं से; भुवम्—पृथ्वी को; आससाद—आगे आ रहा था; महा-ह्राद:—भीषण शोर करता; कल्प-अन्ते—कल्प के अन्त में (प्रलय); इव—सदृश; भीषण:—भयावना ।.
 
अनुवाद
 
 फिर, समस्त जगत के लिए प्रलय-काल के समान भयानक समुद्र अपनी उत्ताल तरंगों तथा भीषण गर्जना के साथ उनके समक्ष आ पहुँचा।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥