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श्लोक 4.10.27  |
समुद्र ऊर्मिभिर्भीम: प्लावयन् सर्वतो भुवम् ।
आससाद महाह्राद: कल्पान्त इव भीषण: ॥ २७ ॥ |
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शब्दार्थ |
समुद्र:—समुद्र; ऊर्मिभि:—लहरों से; भीम:—भयानक; प्लावयन्—डुबाता हुआ; सर्वत:—सभी दिशाओं से; भुवम्—पृथ्वी को; आससाद—आगे आ रहा था; महा-ह्राद:—भीषण शोर करता; कल्प-अन्ते—कल्प के अन्त में (प्रलय); इव—सदृश; भीषण:—भयावना ।. |
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अनुवाद |
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फिर, समस्त जगत के लिए प्रलय-काल के समान भयानक समुद्र अपनी उत्ताल तरंगों तथा भीषण गर्जना के साथ उनके समक्ष आ पहुँचा। |
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