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श्लोक 4.10.28  |
एवंविधान्यनेकानि त्रासनान्यमनस्विनाम् ।
ससृजुस्तिग्मगतय आसुर्या माययासुरा: ॥ २८ ॥ |
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शब्दार्थ |
एवम्-विधानि—इस प्रकार के (कौतुक); अनेकानि—बहुत से; त्रासनानि—डरावने; अमनस्विनाम्—अल्पज्ञों के लिए; ससृजु:—उत्पन्न किया; तिग्म-गतय:—क्रूर स्वभाव वाले; आसुर्या—आसुरी; मायया—माया से; असुरा:—असुर गण ।. |
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अनुवाद |
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असुर-यक्ष स्वभाव से अत्यन्त क्रूर होते हैं और अपनी आसुरी माया से वे अल्पज्ञानियों को डराने वाले अनेक कौतुक कर सकते थे। |
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