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श्लोक 4.10.29  |
ध्रुवे प्रयुक्तामसुरैस्तां मायामतिदुस्तराम् ।
निशम्य तस्य मुनय: शमाशंसन् समागता: ॥ २९ ॥ |
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शब्दार्थ |
ध्रुवे—ध्रुव के विरुद्ध; प्रयुक्ताम्—प्रयुक्त; असुरै:—असुरों द्वारा; ताम्—उस; मायाम्—मायावी शक्ति; अति-दुस्तराम्—अत्यन्त भयावनी; निशम्य—सुनकर; तस्य—उसका; मुनय:—बड़े-बड़े मुनि; शम्—कल्याण; आशंसन्—प्रोत्साहित करते हुए; समागता:—एकत्र हो गये ।. |
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अनुवाद |
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जब मुनियों ने सुना कि ध्रुव महाराज असुरों के मायावी करतबों से पराजित हो गये हैं, तो वे उनकी मंगल-कामना के लिए तुरन्त वहाँ एकत्र हो गये। |
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