श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.10.5 
गत्वोदीचीं दिशं राजा रुद्रानुचरसेविताम् ।
ददर्श हिमवद्‌द्रोण्यां पुरीं गुह्यकसङ्कुलाम् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
गत्वा—जाकर; उदीचीम्—उत्तरी; दिशम्—दिशा; राजा—राजा ध्रुव ने; रुद्र-अनुचर—रुद्र अर्थात् शिव के अनुयायियों द्वारा; सेविताम्—बसी हुई; ददर्श—देखा; हिमवत्—हिमालय की; द्रोण्याम्—घाटी में; पुरीम्—नगरी; गुह्यक—प्रेत लोगों से; सङ्कुलाम्—पूर्ण ।.
 
अनुवाद
 
 ध्रुव महाराज हिमालय प्रखण्ड की उत्तरी दिशा की ओर गये। उन्होंने एक घाटी में एक नगरी देखी जो शिव के अनुचर भूत-प्रेतों से भरी पड़ी थी।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में बताया गया है कि यक्ष बहुत कुछ शिव के भक्त हैं। इस तरह यक्षों को तिब्बती जन-जाति की तरह हिमालय की आदिम जाति माना जा सकता है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥