श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.10.7 
ततो निष्क्रम्य बलिन उपदेवमहाभटा: ।
असहन्तस्तन्निनादमभिपेतुरुदायुधा: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; निष्क्रम्य—बाहर आकर; बलिन:—अत्यन्त बलशाली; उपदेव—कुवेर के; महा-भटा:—बड़े बड़े सैनिक; असहन्त:—असहनीय; तत्—शंख की; निनादम्—ध्वनि; अभिपेतु:—आक्रमण किया; उदायुधा:—विभिन्न आयुधों से सज्जित ।.
 
अनुवाद
 
 हे वीर विदुर, ध्रुव महाराज के शंख की गूँजती ध्वनि को सहन न कर सकने के कारण यक्षों के महा-शक्तिशाली सैनिक अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर अपनी नगरी से बाहर निकल आये और उन्होंने ध्रुव पर धावा बोल दिया।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥