श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 11: युद्ध बन्द करने के लिए  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.11.16 
एवं प्रवर्तते सर्ग: स्थिति: संयम एव च ।
गुणव्यतिकराद्राजन्मायया परमात्मन: ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; प्रवर्तते—घटित होता है; सर्ग:—सृष्टि; स्थिति:—पालन; संयम:—प्रलय; एव—निश्चय ही; च—तथा; गुण—गुणों की; व्यतिकरात्—पारस्परिक क्रिया से; राजन्—हे राजा; मायया—माया द्वारा; परम-आत्मन:—भगवान् की ।.
 
अनुवाद
 
 मनु ने आगे कहा : हे राजा ध्रुव, भगवान् की मोहमयी भौतिक शक्ति के द्वारा तथा भौतिक प्रकृति के तीनों गुणों की पारस्परिक क्रिया से ही सृष्टि, पालन तथा संहार होता रहता है।
 
तात्पर्य
 पहले प्रकृति के पाँच तत्त्वों से उत्पत्ति होती है, फिर गुणों की अन्यान्य क्रिया से स्थिति (पालन) होती है। जब बालक उत्पन्न होता है, तो माता-पिता तुरन्त उसके पालन की व्यवस्था करते हैं। सन्तान के पालन की यह प्रवृत्ति न केवल मानव समाज में पाई जाती है, वरन् पशु-समाज में भी पाई जाती है। बाघ भी अपने शिशुओं की देख-रेख करते हैं, यद्यपि उनमें अन्य पशुओं को खाने की जन्मजात प्रवृत्ति होती है। गुणों की अन्योन्य क्रिया से उत्पत्ति, पालन तथा संहार अवश्यम्भावी हैं। किन्तु हमें यह जानना चाहिए कि यह सब कुछ भगवान् की अध्यक्षता में घटित होता है। इसी विधि से सब कुछ हो रहा है। उत्पत्ति तो रजोगुण का कार्य है, पालन सतोगुण का और संहार तमोगुण का। हम यह देख सकते हैं कि जो सतोगुणी है, वह रजोगुणी या तमोगुणी की तुलना में अधिक काल तक जीवित रहता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो सतोगुणी हो जाता है, वह उच्च लोक को जाता है, जहाँ उसका आयुष्य बढ़ जाता है। ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:—बड़े बड़े ऋषि, मुनि तथा संन्यासी, जो कि सतोगुणी होते हैं उच्च लोक को जाते हैं। जो गुणों से परे हैं, वे भी सतोगुणी होते हैं और वे वैकुण्ठलोक में शाश्वत जीवन प्राप्त करते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥