सोऽनन्तोऽन्तकर: कालोऽनादिरादिकृदव्यय: ।
जनं जनेन जनयन्मारयन्मृत्युनान्तकम् ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
स:—वह; अनन्त:—अनन्त; अन्त-कर:—संहारकर्ता; काल:—काल, समय; अनादि:—जिसका आदि नहीं है; आदि-कृत्— प्रत्येक वस्तु का आदि; अव्यय:—न चुकने वाले; जनम्—जीवात्माएँ; जनेन—जीवात्माओं के द्वारा; जनयन्—उत्पन्न कराकर; मारयन्—मारना; मृत्युना—के द्वारा; अन्तकम्—वधकर्ता ।.
अनुवाद
हे ध्रुव, भगवान् नित्य हैं, किन्तु कालरूप में वे सबों को मारनेवाले हैं। उनका आदि नहीं है, यद्यपि वे हर वस्तु के आदि कर्ता हैं। वे अव्यय हैं, यद्यपि कालक्रम में हर वस्तु चुक जाती है। जीवात्मा की उत्पत्ति पिता के माध्यम से होती है और मृत्यु द्वारा उसका विनाश होता है, किन्तु भगवान् जन्म तथा मृत्यु से सदा मुक्त हैं।
तात्पर्य
इस श्लोक से भगवान् की परम सत्ता तथा अचिन्त्य शक्ति का सूक्ष्म अध्ययन किया जा सकता है। वे अनन्त हैं, अर्थात् न उनका आदि है, न अन्त, किन्तु वे मृत्यु (समय अथवा काल के रूप में) हैं, जैसाकि भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं—मैं मृत्यु हूँ और जीवन के अन्त में मैं सब कुछ ले लेता हूँ। शाश्वत काल भी आदि रहित है, किन्तु वह समस्त प्राणियों का स्रष्टा है। यहाँ पर पारस पत्थर का उदाहरण दिया जाता है, जो अनेक अमूल रत्न बनाता है, किन्तु उसकी शक्ति नहीं घटती। इसी तरह सृष्टि अनेकों बार होती है, प्रत्येक वस्तु का पालन होता है और कुछ काल बाद हर वस्तु का संहार हो जाता है, किन्तु आदि स्रष्टा भगवान् की शक्ति अप्रभावित और अव्यय रहती है। ब्रह्मा द्वारा गौण सृष्टि की जाती है, क्योंकि ब्रह्मा श्रीभगवान् द्वारा उत्पन्न हैं। शिवजी सारी सृष्टि का संहार करते हैं, किन्तु अन्त में वे भी स्वयं भगवान् विष्णु द्वारा विनष्ट कर दिये जाते हैं। केवल भगवान् विष्णु बचे रहते हैं। वैदिक स्तोत्रों में कहा गया है कि आरम्भ में केवल विष्णु थे और अन्त में भी वे ही रहेंगे।
एक उदाहरण द्वारा हमें परमेश्वर की अचिन्त्य शक्ति को समझने में सहायता होगी। युद्धपद्धति के आधुनिक इतिहास में भगवान् ने हिटलर की सृष्टि की और इसके पूर्व नैपोलियन बोनापार्ट की, और इनमें से प्रत्येक ने युद्ध में अनेक जीवात्माओं का संहार किया। किन्तु अन्त में बोनापार्ट तथा हिटलर दोनों मारे गये। आज भी लोग हिटलर तथा बोनापार्ट के सम्बन्ध में पुस्तकें लिखने तथा पढऩे के शौकीन हैं और यह जानना चाहते है कि उन्होंने युद्ध में इतने लोगों को कैसे मारा। प्रतिवर्ष हिटलर द्वारा बन्दीग्रह में हजारों यहूदियों के वध के सम्बन्ध में जनता के पठनार्थ पुस्तकें प्रकाशित होती रहती हैं। किन्तु कोई इस पर शोध नहीं कर रहा कि हिटलर को किसने मारा और मनुष्यों के इस महान् हत्यारे को किसने उत्पन्न किया? भगवान् के भक्त विश्व के परिवर्तनशील इतिहास का अध्ययन करने में रुचि नहीं दिखाते। वे तो एकमात्र उसमें रुचि रखते हैं, जो आदि स्रष्टा, पालक तथा संहारक है। कृष्णभावनामृत-आन्दोलन का यही उद्देश्य है।
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