हे ध्रुव, तुम केवल पाँच वर्ष की आयु में ही अपनी माता कि सौत के वचनों से अत्यन्त दुखी हुए और बड़ी बहादुरी से अपनी माता का संरक्षण त्याग दिया तथा भगवान् का साक्षात्कार करने के उद्देश्य से योगाभ्यास में संलग्न होने के लिए जंगल चले गये थे। इस कारण तुमने पहले से ही तीनों लोकों में सर्वोच्च पद प्राप्त कर लिया है।
तात्पर्य
मनु को गर्व था कि ध्रुव महाराज उनके कुल के वंशधर थे, क्योंकि जब वे पाँच साल के थे तभी उन्होंने भगवान् का ध्यान करना प्रारम्भ किया और केवल छह मास में परमेश्वर का साक्षात्कार कर लिया। वस्तुत: ध्रुव महाराज मनुवंश के अथवा मनुष्य-परिवार के भूषण हैं। मनुष्य-परिवार का प्रारम्भ मनु से होता है। संस्कृत में मनुष्य शब्द का अर्थ “मनु की संतान” है। ध्रुव महाराज न केवल स्वायंभुव मनु के कुल की कीर्ति हैं, वरन् वे सम्पूर्ण मानव समाज की कीर्ति हैं। चूँकि ध्रुव महाराज ने पहले ही भगवान् के समक्ष समर्पण कर दिया था, अत: उनसे विशेष अनुरोध किया जा रहा था कि ऐसा कुछ न करें जो शरणागत के लिए अशोभनीय हो।
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