श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 11: युद्ध बन्द करने के लिए  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.11.35 
एवं स्वायम्भुव: पौत्रमनुशास्य मनुर्ध्रुवम् ।
तेनाभिवन्दित: साकमृषिभि: स्वपुरं ययौ ॥ ३५ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; स्वायम्भुव:—स्वायंभुव; पौत्रम्—अपने पौत्र को; अनुशास्य—शिक्षा देकर; मनु:—मनु; ध्रुवम्—ध्रुव महाराज को; तेन—उसके द्वारा; अभिवन्दित:—नमस्कृत; साकम्—साथ-साथ; ऋषिभि:—ऋषियों के साथ; स्व-पुरम्—अपने धाम को; ययौ—चले गये ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार जब स्वायंभुव मनु अपने पौत्र ध्रुव महाराज को शिक्षा दे चुके तो ध्रुव ने उन्हें सादर नमस्कार किया। फिर ऋषियों समेत मनु अपने धाम को चले गये।
 
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्ध के अन्तर्गत “युद्ध बन्द करने के लिए ध्रुव को स्वायंभुव मनु की सलाह” नामक ग्यारहवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥