उन तीखी धारवाले बाणों ने शत्रु-सैनिकों को विचलित कर दिया, और वे प्राय: मूर्च्छित हो गये। किन्तु ध्रुव महाराज से क्रुद्ध होकर यक्षगण युद्धक्षेत्र में किसी न किसी प्रकार अपने-अपने हथियार लेकर एकत्र हो गये और उन्होंने आक्रमण कर दिया। जिस प्रकार गरुड़ के छेडऩे पर सर्प अपना-अपना फन उठाकर गरुड़ की ओर दौड़ते हैं, उसी प्रकार समस्त यक्ष सैनिक अपने- अपने हथियार उठाये ध्रुव महाराज को जीतने की तैयारी करने लगे।
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