नास्मत्कुलोचितं तात कर्मैतत्सद्विगर्हितम् ।
वधो यदुपदेवानामारब्धस्तेऽकृतैनसाम् ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
न—नहीं; अस्मत्-कुल—हमारे कुल के लिए; उचितम्—उचित, उपयुक्त; तात—मेरे पुत्र; कर्म—कर्म; एतत्—यह; सत्— साधु पुरुष; विगर्हितम्—वर्जित; वध:—हत्या; यत्—जो; उपदेवानाम्—यक्षों का; आरब्ध:—किया गया; ते—तुम्हारे द्वारा; अकृत-एनसाम्—पाप-विहीनों अथवा निर्दोषों का ।.
अनुवाद
हे पुत्र, तुम निर्दोष यक्षों का जो यह वध कर रहे हो वह न तो अधिकृत पुरुषों द्वारा स्वीकार्य है और न यह हमारे कुल को शोभा देनेवाला है क्योंकि तुमसे आशा की जाती है कि तुम धर्म तथा अधर्म के विधानों को जानो।
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