तम्—उसको; एवम्—इस प्रकार; शील—दैवी गुण से; सम्पन्नम्—युक्त; ब्रह्मण्यम्—ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धालु; दीन—निर्धनों के प्रति; वत्सलम्—दयालु; गोप्तारम्—रक्षक; धर्म-सेतूनाम्—धार्मिक नियमों का; मेनिरे—सोचा; पितरम्—पिता; प्रजा:— जनता ।.
अनुवाद
ध्रुव महाराज सभी दैवी गुणों से सम्पन्न थे; वे भगवान् के भक्तों के प्रति अत्यन्त श्रद्धालु, दीनों तथा निर्दोषों के प्रति दयालु एवं धर्म की रक्षा करनेवाले थे। इन गुणों के कारण वे समस्त नागरिकों के पिता तुल्य समझे जाते थे।
तात्पर्य
यहाँ पर ध्रुव महाराज के जिन व्यक्तिगत गुणों का वर्णन हुआ है, वे साधु स्वरूप राजा के आदर्श गुण हैं। केवल राजा ही नहीं, वरन् आज की प्रजातांत्रिक सरकार के नेताओं में भी ये देवतुल्य गुण होने चाहिए, तभी राज्य के नागरिक सुखी रह सकते हैं। यहाँ पर यह स्पष्ट बताया गया है कि नागरिक ध्रुव महाराज को अपने पिता समान मानते थे। जिस प्रकार से बालक अपने सुयोग्य पिता पर आश्रित रहकर पूर्ण रूप से सन्तुष्ट रहता है उसी प्रकार राज्य के नागरिकों को राज्य अथवा राजा द्वारा सुरक्षा मिलने पर सभी प्रकार से सन्तुष्ट रहना चाहिए। किन्तु आजकल राज्य में सरकार की ओर से जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं, अर्थात् धन तथा जन की सुरक्षा, की भी कोई गारंटी नहीं है। इस प्रसंग में ब्रह्मण्यम् शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ध्रुव महाराज ब्रह्मणों के प्रति अत्यन्त श्रद्धालु थे जो वेदों के अध्ययन में लगे रहते थे तथा परिणाम स्वरूप भगवान् के बारे में ज्ञान अर्जित किये रहते थे। वे ब्राह्मण निरन्तर कृष्णभक्ति का प्रसार करते हैं। राज्य को चाहिए कि जो भी संस्थाएँ सारे विश्व में ईश्वर-चेतना का प्रसार करती हैं उनका सम्मान करे, किन्तु दुर्भाग्यवश आज कल ऐसी एक भी सरकार या राज्य नहीं जो ऐसे आन्दोलनों की सहायता करता हो। जहाँ तक सद्गुणों का प्रश्न है, राज-प्रशासन में ऐसा एक भी व्यक्ति पाना कठिन है, जो सद्गुणों से युक्त हो। प्रशासकगण कुर्सी पर बैठकर हर प्रार्थना को अस्वीकार करते रहते हैं, मानो उन्हें इसी के लिए वेतन मिलता है। एक अन्य शब्द दीनवत्सलम् भी महत्त्व का है। राज्य के मुखिया को दीनों के प्रति दयालु होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, इस युग में राज्य के एजेन्ट तथा अध्यक्ष राज्य से उच्च वेतन प्राप्त करते हैं और अपने को पवित्र मानते हैं, किन्तु वे उन कसाईघरों को चलने देते हैं जहाँ निर्दोष पशुओं का वध होता है। यदि हम ध्रुव महाराज के सद्गुणों तथा आज के राजनीतिज्ञों के गुणों की तुलना करें तो देखेंगे कि इन दोनों में असल में कोई तुलना है ही नहीं। ध्रुव महाराज सत्ययुग में हुए थे (जैसाकि अगले श्लोकों से स्पष्ट है); वे सत्ययुग के आदर्श राजा थे। इस कलियुग में सरकारी प्रशासन समस्त सद्गुणों से शून्य है। इन सब बातों पर विचार करते हुए आज मनुष्यों के समक्ष धर्म, जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा के लिए कृष्णभक्ति (कृष्ण-चेतना) ग्रहण करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह गया है।
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