धन-द: उवाच—धनपति (कुबेर) ने कहा; भो: भो:—अरे; क्षत्रिय-दायाद—हे क्षत्रिय पुत्र; परितुष्ट:—अत्यन्त प्रसन्न; अस्मि— हूँ; ते—तुमसे; अनघ—हे पापहीन; यत्—क्योंकि; त्वम्—तुम; पितामह—अपने पितामह के; आदेशात्—आदेश से; वैरम्— शत्रुता, वैर; दुस्त्यजम्—न छोड़ी जा सकने योग्य; अत्यज:—त्याग किया है ।.
अनुवाद
धनपति कुबेर ने कहा : हे निष्पाप क्षत्रियपुत्र, मुझे यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि अपने पितामह के आदेश से तुमने वैरभाव को त्याग दिया यद्यपि इसे तज पाना बहुत कठिन होता है। मैं तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हूँ।
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