तस्य—उसके; अखिल—सम्पूर्ण; जगत्—ब्रह्माण्ड; धातु:—स्रष्टा; आवाम्—हम दोनों; देवस्य—भगवान् के; शार्ङ्गिण:— शार्ङ्ग धनुष को धारण करने वाले; पार्षदौ—पार्षद; इह—अब; सम्प्राप्तौ—पास आये हैं; नेतुम्—ले जाने के लिए; त्वाम्— तुमको; भगवत्-पदम्—भगवान् के स्थान तक ।.
अनुवाद
हम उन भगवान् के प्रतिनिधि हैं, जो समग्र ब्रह्माण्ड का स्रष्टा हैं और हाथ में शार्ङ्ग नामक धनुष को धारण किये रहते हैं। आपको वैकुण्ठलोक ले जाने के लिए हमें विशेष रूप से नियुक्त किया गया है।
तात्पर्य
भगवद्गीता में भगवान् कहते हैं कि उनकी दिव्य लीलाओं को (चाहे इस भौतिक संसार में या आध्यात्मिक संसार में)जानकर कोई भी व्यक्ति, जो यह जानता है कि मैं कौन हूँ, किस प्रकार प्रकट होता हूँ और किस प्रकार कर्म करता हूँ, तुरन्त ही वैकुण्ठलोक जाने का भागी बन सकता है। ध्रुव पर भगवद्गीता का यह नियम लागू होता है। उन्होंने तपस्या द्वारा आजीवन भगवान् को समझने का प्रयास किया। अब इसका परिपक्व फल यह मिला कि वे भगवान् के विश्वश्त पार्षदों के साथ वैकुण्ठलोक जाने के योग्य हो गए।
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