वास्तव में न तो तुमने यक्षों को मारा है न उन्होंने तुम्हारे भाई को मारा है, क्योंकि सृजन तथा विनाश का अनन्तिम कारण परमेश्वर का नित्य स्वरूप काल ही है।
तात्पर्य
जब धनपति कुबेर ने ध्रुव महाराज को पापमुक्त कह कर सम्बोधित किया होगा तो ध्रुव महाराज ने अपने को इतने यक्षों के वध का उत्तरदायी समझ कर अपने विषय में कुछ और ही सोचा होगा; किन्तु कुबेर ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उन्होंने सचमुच ही यक्षों का वध नहीं किया था, अत: वे पापी थे ही। उन्होंने अपने राजा के कर्तव्य को निबाहा था। कुबेर ने कहा, “तुम्हें यह भी नहीं सोचना चाहिए कि यक्षों द्वारा तुम्हारे भाई का वध हुआ। वह तो प्रकृति के नियमानुसार काल के फेर से मरा या मारा गया। प्रलय तथा सृष्टि के लिए अन्तत: नित्यकाल ही उत्तरदायी है, जो भगवान् के स्वरूपों में से एक है। तुम इन कृत्यों के भागी नहीं हो।”
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