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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  4.12.30 
तदोत्तानपद: पुत्रो ददर्शान्तकमागतम् ।
मृत्योर्मूर्ध्नि पदं दत्त्वा आरुरोहाद्भुतं गृहम् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
तदा—तब; उत्तानपद:—राजा उत्तानपाद के; पुत्र:—पुत्र ने; ददर्श—देखा; अन्तकम्—साक्षात् मृत्यु को; आगतम्—आया हुआ; मृत्यो: मूर्ध्नि—मृत्यु के सिर पर; पदम्—पाँव; दत्त्वा—रखकर; आरुरोह—चढ़ गये; अद्भुतम्—आश्चर्यमय; गृहम्— विमान में जो भवन के तुल्य था ।.
 
अनुवाद
 
 जब ध्रुव महाराज उस दिव्य विमान में चढऩे जा रहे थे तो उन्होंने साक्षात् काल (मृत्यु) को अपने निकट आते देखा। किन्तु उन्होंने मृत्यु की परवाह नहीं की; उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाकर काल के सिर पर अपने पाँव रख दिये और वे विमान में चढ़ गये जो इतना विशाल था कि जैसे एक भवन हो।
 
तात्पर्य
 एक भक्त तथा एक अभक्त के देहान्त को एक-जैसा समझ लेना सर्वथा भ्रामक है। जब ध्रुव महाराज उस दिव्य विमान में चढ़ रहे थे तो उन्होंने एकाएक मृत्यु को अपने पास आते देखा, किन्तु वे भयभीत नहीं हुए। मृत्यु हुआ उन्हें कष्ट दिये जाने के बदले उन्होंने मृत्यु की उपस्थिति का लाभ उठाया और उसके सिर पर अपने पाँव रख दिये। अल्पज्ञानी लोग भक्त तथा अभक्त की मृत्यु के अन्तर को नहीं जानते। इस सम्बन्ध में एक उदाहरण प्रासंगिक होगा। बिल्ली मुँह से अपने बच्चे भी पकड़ती है और चूहों को भी। ऊपर से बच्चों तथा चूहों का पकड़ा जाना एक-जैसा लगता है, किन्तु ऐसा है नहीं। चूहे के मुँह से पकड़े जाने का अर्थ है उसकी मृत्यु, किन्तु बच्चे का पकड़ा जाना बच्चे के लिए सुखकर होता है। जब ध्रुव महाराज विमान में चढऩे लगे तो उन्होंने नमस्कार करने के लिए आई हुई मृत्यु का लाभ उठाया, वे उसके सिर पर पाँव रखकर उस अनुपम विमान में, जो एक विशाल गृह की भाँति था, चढ़ गये।

भागवत में ऐसे अन्य उदाहरण भी प्राप्त हैं। कहा जाता है कि जब कर्दम मुनि ने अपनी पत्नी देवहूति को समस्त ब्रह्माण्ड में घुमाने के लिए विमान की रचना की तो वह एक बड़े नगर-जैसा था जिसमें अनेक घर, सरोवर तथा उद्यान समाहित थे। आधुनिक विज्ञानियों ने बड़े-बड़े वायुयान बनाये हैं, किन्तु उनमें यात्री खचाखच भरे रहते हैं जिससे उन्हें सभी तरह की असुविधाएँ होती हैं।

भौतिक विज्ञानी विमान के निर्माण में भी पूरी तरह दक्ष नहीं हैं। कर्दम मुनि के विमान अथवा वैकुण्ठलोक से आये हुए विमान की बराबरी में उन्हें ऐसा विमान बनाना चाहिए जो एक विशाल नगर की भाँति सभी सुविधाओं से—यथा सरोवर, उद्यान, पार्क इत्यादि से—लैस हो। उनके विमान को अन्तरिक्ष में उड़ सकने में तथा अन्य लोकों की सैर कर सकने में सक्षम होना चाहिए। यदि वे ऐसा विमान बना सकें तो उन्हें अन्तरिक्ष में उड़ान भरते समय ईंधन के लिए अंतरिक्ष में विभिन्न स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता न रहेगी। ऐसे विमान में अनन्त ईंधन होगा अथवा विष्णुलोक से आये विमान की तरह वह बिना ईंधन के उड़ सकेगा।

 
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