श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  4.12.31 
तदा दुन्दुभयो नेदुर्मृदङ्गपणवादय: ।
गन्धर्वमुख्या: प्रजगु: पेतु: कुसुमवृष्टय: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
तदा—उस समय; दुन्दुभय:—दुन्दुभी; नेदु:—बजने लगे; मृदङ्ग—मृदंग; पणव—ढोल; आदय:—इत्यादि.; गन्धर्व-मुख्या:— गन्धर्वलोक के मुख्य निवासी; प्रजगु:—गाने लगे; पेतु:—वर्षा की; कुसुम—फूल; वृष्टय:—वर्षा की तरह ।.
 
अनुवाद
 
 उस समय ढोल, मृदंग तथा दुन्दुभी के शब्द आकाश से गूँजने लगे, प्रमुख-प्रमुख गंधर्व जन गाने लगे और अन्य देवताओं ने ध्रुव महाराज पर फूलों की मूसलाधार वर्षा की।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥