सन्त मैत्रेय ने आगे कहा : हे कौरव वंशी विदुर, जिस प्रकार बैल अपनी दाईं ओर बँाधे मध्यवर्ती लट्ठे के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, उसी प्रकार आकाश के सभी नक्षत्र अत्यन्त वेग से ध्रुव महाराज के धाम का निरन्तर चक्कर लगाते रहते हैं।
तात्पर्य
इस ब्रह्माण्ड का प्रत्येक ग्रह अत्यन्त वेग से यात्रा करता है। श्रीमद्भागवत के कथन से पता चलता है कि सूर्य भी सोलह हजार मील प्रति सेकंड की गति से यात्रा करता है और ब्रह्म-संहिता के इस श्लोक—यच्चक्षुरेष सविता सकलग्रहाणाम्—में सूर्य को भगवान् गोविन्द का नेत्र माना गया है। इसकी भी एक कक्षा होती है, जिसके भीतर यह चक्कर लगाता रहता है। इसी प्रकार अन्य समस्त ग्रहों की अपनी-अपनी कक्षाएँ हैं। किन्तु वे सभी मिलकर ध्रुवतारा या ध्रुवलोक की प्रदक्षिणा करते हैं, जहाँ पर तीनों लोकों के शीर्ष पर ध्रुव महाराज स्थित हैं। हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि भक्त का वास्तविक स्थान कितना ऊँचा होता है, अत: हम भगवान् के पद की श्रेष्ठता का अनुमान लगा ही नहीं सकते।
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