महिमानम्—यश; विलोक्य—देखकर; अस्य—ध्रुव महाराज का; नारद:—नारद मुनि; भगवान्—भगवान् के ही समान पूज्य; ऋषि:—सन्त; आतोद्यम्—वीणा; वितुदन्—बजाते हुए; श्लोकान्—श्लोक; सत्रे—यज्ञस्थल में; अगायत्—उच्चारण किया; प्रचेतसाम्—प्रचेताओं के ।.
अनुवाद
ध्रुव महाराज की महिमा को देख कर, नारद मुनि अपनी वीणा बजाते प्रचेताओं के यज्ञस्थल पर गये और प्रसन्नतापूर्वक निम्नलिखित तीन श्लोकों का उच्चार किया।
तात्पर्य
नारद मुनि ध्रुव महाराज के गुरु थे। वे ध्रुव की महिमा देखकर अत्यन्त प्रसन्न थे। जिस प्रकार पिता अपने पुत्र की हर प्रकार से उन्नति देखकर प्रसन्न होता है, उसी प्रकार गुरु अपने शिष्यकी उन्नति को देख कर अतीव प्रसन्न होता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.